छत्तीसगढ़ में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इसे कृषि का दर्जा दे दिया है। भूपेश कैबिनेट ने 20 जुलाई को हुई बैठक में इस फैसले पर मुहर लगा दी है। इससे प्रदेश के मछुआरों और मत्स्य कृषकों को कई तरह की सहूलियतें मिलेंगी। मत्स्य पालन के लिए किसानों के समान ब्याज रहित ऋण सुविधा मिलने के साथ ही जलकर और विद्युत शुल्क में भी छूट का लाभ मिलेगा।
इसका फायदा मछुआ जाति के लोगों और मछुआ सहकारी समिति को मिलेगा। मछली पालन में लगे मछुआरों को सहकारी समितियों से ऋण एवं अन्य सुविधाएं मिल सकें यह भी मंशा है। मत्स्य पालन व्यवसाय से जुड़े जिले के लगभग आठ हजार मत्स्य पालक विभिन्ना योजनाओं से लाभांवित हो रहे हैं। सहायक संचालक, मत्स्य पालन बीना गढ़पाले बताती हैं कि जिले तालाब और जलाशयों में मछली पालन किया जा रहा है, जो कि हजारों लोगों की आजीविका का साधन बना हुआ है।
जिले में कृषि के साथ-साथ तालाब और जलाशयों में बड़ी संख्या में मछली पालन हो रहा है। जिले के 3561 ग्रामीण तालाब, जिसका जलक्षेत्र 4322.172 हेक्टेयर है। इसमें से 3334 ग्रामीण तालाब (जलक्षेत्र 41.69.147 हेक्टेयर) में मछली पालन किया जा रहा है। इसी तरह जिले में 50 सिंचाई जलाशय (जलक्षेत्र 9036.104 हेक्टेयर) में मछली पालन किया जा रहा है।
मछली बीज उत्पादन एवं संचयन के लिए जिले में छह हैचरी हैं। इनमें सांकरा स्थित शासकीय मत्स्य बीज प्रक्षेत्र सह हेचरी में दो नग हैचरी, छत्तीसगढ़ मत्स्य महासंघ के अधीन देमार में दो नग हैचरी, परखंदा में एक हैचरी और एक निजी हैचरी कुसुमखुंटा में है। इसी तरह जिले में पांच मत्स्य बीज प्रक्षेत्र स्थापित है।
इनमें सांकरा स्थित शासकीय मत्स्य बीज प्रक्षेत्र सह हैचरी, देमार और परखंदा में छत्तीसगढ़ मत्स्य महासंघ के अधीन एक-एक प्रक्षेत्र तथा कुसुमखुंटा और सिहावा में निजी प्रक्षेत्र शामिल है। ज्ञात हो कि शासकीय मत्स्य बीज प्रक्षेत्रों से मत्स्य पालकों को रियायती शासकीय दर पर मत्स्य बीज उपलब्ध कराई जाती है।