पिछले कुछ सालों से मानव-हाथी द्वंद की घटनाओं में खतरनाक बढ़ोतरी देखी जा रही है। जहां एक ओर हाथियों की संया लगातार घट रही है। दूसरी ओर, इन विशाल जीवों द्वारा मानवों पर हमलों की संख्या भी बढ़ रही है। पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ में 90 हाथियों और 303 लोग हाथी के हमलों में अपनी जान गंवा चुके हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि मानव-हाथी के बीच संघर्ष लगातार बढ़ रहा है और हाथियों की घटती संख्या आने वाले दिनों में गंभीर संकट का रूप ले सकती है।
वर्ष 2017 में देशभर में हुए हाथियों की गणना में 27,312 हाथी बताए गए थे। हालांकि, पांच सालों में छत्तीसगढ़ में अकेले 90 हाथियों की मौत हो चुकी है। पूरे देश में इस अवधि में 528 हाथियों की मौत हुई है। इसके विपरीत हाथियों के हमलों में भी बढ़ोतरी हुई है। पूरे देश में इस दौरान 2,833 लोग हाथियों के हमलों में अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं।
अब तक नक्सल समस्या से त्रस्त छत्तीगसढ़ आजकल नई आफत से जूझ रहा है। यह आफत हैं हाथी। आफत इसलिए क्योंकि बेहद कम समय में इनका दायरा 5 जिलों से बढ़कर 10 जिलों तक बढ़ गया है। पांच साल में 263 जान लेने के साथ सिर्फ 2019 में 750 से अधिक मकान तोड़ चुके हाथियों ने 2850 से अधिक हेक्टेयर फसल रौंद दी है। पांच साल पहले तक हाथी सिर्फ कोरबा, कोरिया, रायगढ़, जशपुर व सरगुजा के कुछ वन क्षेत्रों तक सिमटे थे। अब ये महासमुंद, बलौदाबाजार, गरियाबंद के साथ सरगुजा संभाग के बलरामपुर, सूरजपुर तक फैल चुके हैं। जंगलों में वनवासियों की बस्तियां, आसपास के गांव जरूर इनके निशाने पर रहते थे। अब हाथी महासमुंद, अंबिकापुर में कलेक्टोरेट तक पहुंच गए, रायपुर के सीमावर्ती गांव में महीनों से इनका दल उपद्रव कर रहा है। कोरबा की कॉलोनियों से अक्सर इनकाे खदेड़ना पड़ता है।