हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने एक शोध के बाद विश्व में पहली बार देवदार की पत्तियों से जैविक कीटनाशक और खाद तैयार की है। जैविक फफूंदनाशक (ट्राइकोडर्मा) के उपयोग से देवदार की पत्तियों को कीटनाशकों में बदला गया है। इससे किसानों को खाद बनाने के लिए नया विकल्प मिल गया है। किसान इसे खुद भी तैयार कर सकते हैं। शिमला और आसपास के जंगलों में देवदार के पेड़ों से गिरी पत्तियों पर ही यह शोध किया गया है। जैविक फफूंद देवदार की पत्तियों के विघटन को बढ़ाता है और कार्बनिक पदार्थों को पोषक तत्वों से भरपूर जैव उर्वरकों में परिवर्तित करता है। यह पोषक तत्वों को बढ़ाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।
देवदार के पत्तों में प्राकृतिक छटा कीटनाशक मौजूद होते हैं। शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि देवदार के पत्तों से बनाए गए कीटनाशक पहले से मौजूद कीटनाशकों से ज्यादा प्रभावशाली थे। प्रदेश के जंगलों में भारी मात्रा में इन पेड़ों के पत्ते पड़े रहते हैं, जिनका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जा सकता है। प्राकृतिक कीटनाशकों के उपयोग से पर्यावरण को भी लाभ होता है।
हिमालयन अनुसंधान संस्थान शिमला के वैज्ञानिक एवं प्रमुख शोधकर्ता अश्विनी तपवाल ने बताया कि विश्व में पहली बार ट्राइकोडर्मा से खाद और कीटनाशक बनाए गए हैं। जंगलों में देवदार के पत्ते पड़े होते हैं, जिनमें आग लगने की आशंका रहती है। किसान संस्थान से मदर कल्चर ले जाकर खुद पत्तों से खाद और कीटनाशक बना सकते हैं।
जैव उत्पादों से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है और इससे मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। रासायनिक उर्वरकों से मिट्टी को नुकसान हो रहा है और प्रदेश की मिट्टी जल्द ही अपनी पैदावार क्षमता खो देगी। इससे बचने के लिए नए जैव उर्वरक ढूंढना जरूरी है।
शोध का एक उद्देश्य जंगलों की आग कम करना भी था। पेड़ और पत्ते जंगलों में गिरकर सड़ते रहते हैं। तलहट्टी पर पड़े रहने के कारण पत्तों में मौजूद प्राकृतिक कीटनाशक वनस्पति को उगने नहीं देते। पत्ते जल्दी आग भी पकड़ते हैं और हरियाली न होने के कारण जंगलों में आसानी से आग लगती है। पत्तों से कीटनाशक बनने से तलहट्टी पर हरियाली पनपेगी और जंगलों में आग में कमी आएगी।