उत्तर प्रदेश में वर्षों से लंबित चली आ रही चकबंदी प्रक्रिया को बड़ी सफलता मिली है। प्रयागराज, उन्नाव, बरेली, मिर्जापुर समेत प्रदेश के 17 जिलों के 25 गांवों में चकबंदी की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। इनमें दो ऐसे गांव भी शामिल हैं, जहां चकबंदी क्रमशः 58 और 53 वर्षों से अटकी हुई थी।
चकबंदी आयुक्त डॉ. हृषिकेश भास्कर याशोद ने गुरुवार को इसकी जानकारी देते हुए बताया कि संबंधित गांवों में सभी विधिक औपचारिकताओं को पूर्ण करते हुए चकबंदी प्रक्रिया को अंतिम स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। इससे ग्रामीणों को भूमि विवादों से राहत मिलेगी और राजस्व अभिलेखों में स्थायित्व आएगा।
चकबंदी प्रक्रिया जिन जिलों में पूरी की गई है, उनमें बस्ती, संतकबीरनगर, देवरिया, कानपुर नगर, प्रयागराज, उन्नाव, मऊ, आजमगढ़, लखीमपुर खीरी, कन्नौज, प्रतापगढ़, फतेहपुर, बरेली, मिर्जापुर, सीतापुर, सुल्तानपुर और सोनभद्र शामिल हैं। इन जिलों के कुल 25 गांवों में लंबे समय से लंबित चकबंदी मामलों का निस्तारण किया गया है।
आजमगढ़ जिले के गांव उबारपुर और लखमीपुर में 30 दिसंबर 1967 को चकबंदी प्रक्रिया का गजट प्रकाशन हुआ था, लेकिन अभिलेखों के गायब होने के कारण मामला वर्षों तक अटका रहा। इस दौरान प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी, जिससे चकबंदी प्रक्रिया करीब 58 वर्षों तक लंबित रही।
इसी प्रकार आजमगढ़ के ग्राम गहजी में 8 मई 1972 को चकबंदी का गजट प्रकाशित हुआ था, लेकिन ग्रामीणों के बीच आपसी असहमति के चलते कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकी। वर्ष 2016 में एक पक्ष द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वाद दायर किया गया, जिस पर 2019 तक स्थगन आदेश रहा। बाद में वाद के निस्तारण के पश्चात नियमानुसार चकबंदी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया। इस गांव में चकबंदी लगभग 53 वर्षों से लंबित थी।
चकबंदी आयुक्त के स्तर पर ग्रामवासियों के बीच समन्वय स्थापित कर उनके सहयोग से नए अभिलेख तैयार किए गए और धारा-52(1) के अंतर्गत प्रख्यापन के लिए प्रस्ताव भेजा गया। इसके आधार पर दोनों गांवों में धारा-52(1) का प्रख्यापन कर चकबंदी प्रक्रिया को पूर्ण कराया गया।
इस उपलब्धि से किसानों और ग्रामीणों को भूमि संबंधी विवादों से राहत मिलेगी, पारदर्शी अभिलेख तैयार होंगे और ग्रामीण विकास की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।



