चालू वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) में भारत का चावल निर्यात 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ने की उम्मीद है। यह वृद्धि वैश्विक बाजारों से मजबूत मांग और निरंतर उत्पादन वृद्धि के चलते संभव हो रही है। यह जानकारी एपीडा (APEDA) के अध्यक्ष अभिषेक देव ने गुरुवार को दी।
उन्होंने बताया कि 2024-25 में भारत ने 20.1 मिलियन टन चावल का निर्यात किया, जिसकी कुल कीमत 12.95 अरब डॉलर रही। भारतीय चावल वर्तमान में 172 से अधिक देशों में निर्यात किया जा रहा है।
भारत इंटरनेशनल राइस कॉन्फ्रेंस में बड़ा ऐलान
अभिषेक देव ने यह जानकारी भारत इंटरनेशनल राइस कॉन्फ्रेंस (BIRC) 2025 के दौरान दी, जो नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित हो रही है।
उन्होंने कहा —
“इस वित्त वर्ष में चावल निर्यात में दोगुनी (Double-digit) वृद्धि होगी। मात्रा के साथ-साथ मूल्य के लिहाज से भी निर्यात बढ़ेगा।”
यह दो दिवसीय वैश्विक सम्मेलन इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन (IREF) द्वारा आयोजित किया गया है, जिसमें एपीडा गैर-आर्थिक सहयोग दे रहा है।
26 देशों में बढ़ेगा भारतीय चावल का दायरा
एपीडा अध्यक्ष ने बताया कि सरकार ने 26 ऐसे देशों की पहचान की है, जो वर्तमान में भारत से बहुत कम मात्रा में चावल खरीदते हैं। इनमें फिलिपींस जैसे देश शामिल हैं।
“हम जल्द ही इन 26 देशों में एक प्रतिनिधिमंडल भेजेंगे ताकि भारतीय चावल की विविध किस्मों को प्रमोट किया जा सके,” देव ने कहा।
आईआरईएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने बताया कि इन देशों के व्यापार प्रतिनिधियों को सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है, जहां भारत अपने विभिन्न चावल उत्पाद प्रदर्शित कर रहा है। इस आयोजन में 10,000 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
उत्पादन और गुणवत्ता में तेजी
भारत ने 2024-25 में लगभग 150 मिलियन टन चावल का उत्पादन किया, जो 47 मिलियन हेक्टेयर भूमि से हुआ। यह वैश्विक उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत है।
देश में औसत उत्पादकता 2014-15 में 2.72 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2024-25 में 3.2 टन प्रति हेक्टेयर हो गई है। इसका श्रेय उन्नत बीज किस्मों, बेहतर कृषि तकनीकों और सिंचाई नेटवर्क के विस्तार को दिया जा रहा है।
निर्यात में निरंतर उछाल
सितंबर 2025 में भारत का चावल निर्यात 33.18% बढ़कर 925 मिलियन डॉलर पर पहुंच गया। वहीं, अप्रैल-सितंबर 2025 के दौरान कुल निर्यात 10% बढ़कर 5.63 अरब डॉलर रहा।
भारत आज दुनिया का अग्रणी चावल उत्पादक और निर्यातक देश है।
मजबूत वैश्विक मांग, गुणवत्ता सुधार और नए बाजारों के विस्तार से भारत का चावल उद्योग आने वाले वर्षों में और अधिक सशक्त बनने की राह पर है।
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