पंजाब के जालंधर जिले के किसान दविंदर सिंह संधू ने पारंपरिक एकल फसल खेती से हटकर ऐसा खेती मॉडल अपनाया है, जो न सिर्फ उन्हें बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाता है, बल्कि पूरे साल स्थायी आय भी सुनिश्चित करता है। 2016 में नोटबंदी के दौर में जब उनकी पूरी आलू की फसल बर्बाद हो गई, तब संधू ने यह ठान लिया कि अब कभी एक ही फसल पर निर्भर नहीं रहेंगे।
54 वर्षीय संधू के पास खुद की पांच एकड़ जमीन है, जबकि पांच एकड़ जमीन वह सालाना 40 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से पट्टे पर लेते हैं। आज उनका खेत मल्टी-लेयर और मल्टी-क्रॉप सिस्टम का जीवंत उदाहरण बन चुका है, जहां हर मौसम में कोई न कोई फसल तैयार रहती है।
संधू ने अपनी खेती को उन्नत बनाने के लिए रेज़्ड बेड सिस्टम और मल्चिंग तकनीक अपनाई है। इससे मिट्टी की नमी बनी रहती है, खरपतवार कम होते हैं और मिट्टी की सेहत बेहतर होती है। तीन एकड़ जमीन में उन्होंने 72 बेड तैयार किए हैं। इनमें दिसंबर में चुकंदर और जनवरी में गोल लौकी की बुवाई होती है। मार्च तक चुकंदर की कटाई हो जाती है और इसके बाद लौकी की बेलें फैल जाती हैं, जिनकी तुड़ाई जुलाई तक चलती है। बिना जुताई किए इसके बाद कद्दू की खेती की जाती है, जिससे नवंबर-दिसंबर तक उत्पादन मिलता है। इसी चक्र को हर साल दोहराया जाता है।
इस तीन एकड़ भूमि से संधू प्रति एकड़ लगभग 100 क्विंटल चुकंदर, 80–100 क्विंटल लौकी और 100 क्विंटल कद्दू का उत्पादन करते हैं। कुल मिलाकर करीब 900 क्विंटल सब्जियों से उन्हें बाजार भाव के अनुसार 15 से 25 लाख रुपये तक की आमदनी होती है, जिसमें 40–50 प्रतिशत तक शुद्ध मुनाफा रहता है।
इसके अलावा 1.5 एकड़ में उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती कंक्रीट पिलर और ट्रेलिस सिस्टम के जरिए की है। यहां करीब 8,000 पौधे लगे हैं। जुलाई से नवंबर तक इसकी तुड़ाई होती है। एक एकड़ से करीब 100 क्विंटल उत्पादन होता है, जिसकी औसत कीमत 200 रुपये प्रति किलो रहती है। इससे 1.5 एकड़ से करीब 30 लाख रुपये की आमदनी होती है। शुरुआती लागत भले ही अधिक हो, लेकिन पौधे 25 साल तक उत्पादन देते हैं।
संधू एक एकड़ में हल्दी की खेती भी करते हैं, जिससे 200 क्विंटल कच्ची हल्दी निकलती है। इससे 40 क्विंटल सूखी हल्दी तैयार होती है, जिसे वह 300 रुपये प्रति किलो बेचते हैं। खास बात यह है कि उनकी हल्दी एनआरआई ग्राहकों के बीच काफी लोकप्रिय है। इससे उन्हें लगभग 12 लाख रुपये की आय होती है और वे अब इसका रकबा बढ़ाने की योजना बना रहे हैं।
बाकी जमीन में खीरा, गेंदा, फूलगोभी और चारा उगाया जाता है। खीरे से चार एकड़ में करीब पांच लाख रुपये की आय होती है, वहीं गेंदा और फूलगोभी की फसलों से कुछ मौसमों में चार से पांच गुना तक मुनाफा मिलता है। खेत की मेड़ों पर उन्होंने एवोकाडो, अनार, नींबू, आम, जामुन, आंवला जैसे दर्जनों फलदार पौधे लगाए हैं, जिससे जैव विविधता भी बढ़ी है और अतिरिक्त आय भी मिलती है।
पांच एकड़ में ड्रिप इरिगेशन अपनाकर संधू पानी की बड़ी बचत कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने छह लोगों को स्थायी रोजगार भी दे रखा है। संधू का कहना है कि मल्टी-क्रॉप सिस्टम में कभी झटका नहीं लगता, क्योंकि एक फसल नुकसान में जाए तो दूसरी उसे संभाल लेती है।
उन्होंने बताया कि खेती का असली ज्ञान उन्हें अपने अनुभव, असफलताओं और प्रयोगों से मिला है। कई पुरस्कारों से सम्मानित संधू अब हल्दी की खेती बढ़ाने की तैयारी में हैं। उनका मानना है कि यदि किसान स्थानीय परिस्थितियों और बाजार की मांग को समझकर फसल चक्र तय करें, तो खेती एक स्थायी और सुरक्षित व्यवसाय बन सकती है।



