बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का मतदान मंगलवार (4 नवंबर) को संपन्न हो गया, और इस बार चुनावी विमर्श का केंद्र बिंदु बना है — प्रवासन (Migration)। राज्य में लंबे समय से जारी बेरोज़गारी और बेहतर अवसरों की तलाश में लोगों के पलायन को लेकर सियासी दलों के बीच तीखी बहस छिड़ गई है।
विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) — यानी भाजपा-जदयू (BJP-JD(U)) पर तीखा हमला बोला है। विपक्ष का आरोप है कि पिछले 20 वर्षों से सत्ता में रही एनडीए सरकार की नीतियों के कारण ही बिहार से बड़े पैमाने पर श्रमिकों का पलायन हुआ है। वहीं, सत्तापक्ष ने प्रवासन के मुद्दे को नकारने के साथ-साथ राज्य में अवैध प्रवासियों (illegal immigrants) का भय दिखाने की कोशिश की है।
हालांकि, चुनाव आयोग द्वारा कराए गए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision) से यह स्पष्ट हो गया कि बिहार में अवैध प्रवासियों की कोई बड़ी समस्या नहीं है। इसके बावजूद, सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा डर का माहौल बनाना कई पर्यवेक्षकों को राजनीतिक अवसरवाद और ज़ेनोफोबिया (xenophobia) की झलक देता है।
विपक्ष ने अपने अभियान में नारा दिया है — “रोज़गार पैदा करो, प्रवासन रोक दो”।
2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार के करीब 74.54 लाख प्रवासी देश के अन्य हिस्सों में रोज़गार और बेहतर अवसरों की तलाश में गए हुए हैं।
बीजेपी नेतृत्व द्वारा अन्य राज्यों में “एंटी-बिहारी भावना” का मुद्दा उठाना भी विपक्ष ने चुनावी स्टंट करार दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवासन कोई नकारात्मक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह मानव विकास (human development) का अभिन्न हिस्सा है।
विश्लेषकों का सुझाव है कि बिहार को प्रवासन को पूरी तरह रोकने की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास (skill development) पर ध्यान देना चाहिए। राज्य की युवा आबादी और उच्च प्रजनन दर इसे एक बड़ी कार्यबल में बदल सकती है, जो न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान दे सकती है।
अंततः, बिहार के लिए चुनौती यही है कि वह रोज़गार सृजन और जनकल्याण के माध्यम से अपनी जनता को अवसर दे, ताकि प्रवासन मजबूरी नहीं, विकल्प बन सके।
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