प्लांट प्रोटेक्शन उद्योग ने मसौदा पेस्टीसाइड्स मैनेजमेंट बिल को लेकर उठाई गंभीर चिंताएँ – Khalihan News
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प्लांट प्रोटेक्शन उद्योग ने मसौदा पेस्टीसाइड्स मैनेजमेंट बिल को लेकर उठाई गंभीर चिंताएँ

पेस्टीसाइड्स मैनेजमेंट बिल (PMB) को लेकर केंद्र सरकार ने जैसे ही व्यापक परामर्श की प्रक्रिया तेज़ की है, प्लांट प्रोटेक्शन उद्योग ने मसौदे में मौजूद कई प्रावधानों पर गंभीर चिंता जताई है। उद्योग का कहना है कि मौजूदा बिल “इंस्पेक्टर-लाइसेंस राज” को बढ़ावा दे सकता है और नए अणुओं (molecules) पर शोध व नवाचार को भी प्रभावित कर सकता है क्योंकि मसौदे में रेगुलेटरी डेटा प्रोटेक्शन (RDP) जैसी महत्वपूर्ण व्यवस्था का अभाव है।
उद्योग को क्यों है PMB मसौदे से आपत्ति?
पिछले कुछ महीनों में हुई कई बैठकों और चर्चाओं के दौरान उद्योग प्रतिनिधियों ने मसौदे के कई बिंदुओं को लेकर असहमति जताई है। वर्षों से चर्चा में रहे इस बिल पर संसदीय समिति सहित कई स्तरों पर विमर्श हुआ है, लेकिन यह अब तक कानून का रूप नहीं ले सका है।
उद्योग जगत का कहना है कि बिल की आवश्यकता तो है, लेकिन इसके वर्तमान स्वरूप में कई कमियाँ हैं।
एग्रो केम फेडरेशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक कल्याण गोस्वामी के अनुसार:
“PMB भारत के पेस्टिसाइड नियमन प्रणाली को आधुनिक बनाने का एक बड़ा प्रयास है, लेकिन कई महत्वपूर्ण मुद्दों को सुधारने की आवश्यकता है।”
कीमत निर्धारण और लाइसेंसिंग प्रावधानों पर सवाल
मसौदे में सेक्शन 57 को हटाने पर उद्योग ने नाराज़गी जताई है, क्योंकि यह मूल्य विनियमन से जुड़ा है। उद्योग का कहना है कि मूल्य निर्धारण आर्थिक विषय है और इसे तकनीकी कानून का हिस्सा नहीं होना चाहिए।
लाइसेंसिंग के मामले में उद्योग का मानना है कि मसौदा राज्य सरकारों को लाइसेंसिंग अधिकारियों की शक्तियाँ अत्यधिक बढ़ाने की अनुमति देता है, जिससे मनमाने निर्णय, असंगति और राज्यों के बीच असमानता बढ़ सकती है।
उद्योग का सुझाव है कि—
•लाइसेंसिंग प्रणाली केंद्रीय स्तर पर एक समान डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से संचालित हो।
•राज्य-स्तरीय अलग-अलग लाइसेंस की आवश्यकता समाप्त की जाए।
•ई-कॉमर्स बिक्री के लिए लाइसेंस सत्यापन और नियंत्रित पिन-कोड व्यवस्था लागू हो।
सैंपलिंग प्रणाली में ‘चयनात्मक कार्रवाई’ की आशंका
उद्योग के अनुसार, सेक्शन 40(1)(d) निरीक्षकों को सैंपल लेने की शक्ति देता तो है, लेकिन यह निर्धारित नहीं करता कि सैंपलिंग निष्पक्ष, आनुपातिक और सभी निर्माताओं, आयातकों, वितरकों व खुदरा विक्रेताओं पर समान रूप से लागू हो।
इससे कुछ ब्रांडों पर लक्षित कार्रवाई या भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ सकती है।
उद्योग ने सुझाव दिया कि—
•सैंपलिंग रैंडम या रोटेशनल सिस्टम पर आधारित हो,
•डिजिटल रिकॉर्ड रखा जाए,
•निरीक्षकों/विश्लेषकों के दुरुपयोग पर अनिवार्य अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
प्रवर्तन तंत्र की कमियाँ और दंड प्रावधानों पर आपत्ति
उद्योग का कहना है कि मसौदा बिल निरीक्षकों/विश्लेषकों की लापरवाही पर लागू होने वाले दंड या जवाबदेही तंत्र को स्पष्ट नहीं करता, जिससे नियामक विफलताएँ बढ़ सकती हैं।
उद्योग ने यह भी कहा कि—
•कुछ अपराधों को अपराध-मुक्त (decriminalised) किया जाना चाहिए
•सेक्शन 35 में कंपनियों पर वैज्ञानिक आधार के बिना एक वर्ष या उससे अधिक समय के लिए प्रतिबंध लगाने की गुंजाइश है, जो व्यापार को गहरी क्षति पहुँचा सकता है
उद्योग चाहता है कि प्रतिबंध—
•केवल वैज्ञानिक जांच के आधार पर,
•और अधिकतम 60–90 दिनों के लिए हों।
PMB में संरचनात्मक बदलावों की उद्योग की मांग
उद्योग ने कई संरचनात्मक सुधार सुझाए हैं—
•राष्ट्रीय रजिस्ट्री और केंद्रीय डिजिटल डेटाबेस, जिससे अनुपालन पारदर्शी और ट्रैक करने योग्य हो
•नई प्रणाली लागू होने तक पुरानी पंजीकरण व्यवस्था जारी रहे
•नए अणुओं की पंजीकरण प्रक्रिया केवल वास्तविक, सक्षम और बुनियादी ढाँचे वाले आवेदकों तक सीमित हो
•पंजीकरण समिति में टॉक्सिकोलॉजी और केमिस्ट्री विशेषज्ञ शामिल किए जाएँ
•अवैध आयात या धोखाधड़ी में शामिल संस्थाओं को पंजीकरण से प्रतिबंधित किया जाए
•डेटा गोपनीयता सुरक्षा का प्रावधान अनिवार्य किया जाए
उद्योग का कहना है कि PMB में रेगुलेटरी डेटा प्रोटेक्शन (RDP) का अभाव सबसे चिंताजनक है।
कल्याण गोस्वामी ने कहा:
“2008 के मसौदे में पाँच वर्षों के डेटा सुरक्षा प्रावधान को आवश्यक माना गया था, लेकिन मौजूदा मसौदे में इसे शामिल नहीं किया गया है।”
PMB का दो दशक लंबा सफ़र: प्रमुख पड़ाव
•2000–01: संसदीय समिति ने 1968 के इनसैक्टिसाइड्स ऐक्ट में संशोधन की अनुशंसा की
•2008: पेस्टिसाइड मैनेजमेंट बिल पहली बार राज्यसभा में पेश
•2009: समिति ने विस्तृत रिपोर्ट सौंपी, लेकिन बिल लंबित रहा
•2017–18: नया मसौदा सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी
•2020: संशोधित PMB को कैबिनेट मंजूरी; राजसभा में पेश
•2021: स्थायी समिति की रिपोर्ट जारी
•2025: बिल अभी विचाराधीन है और पारित नहीं हुआ है

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