भारत के बागवानी क्षेत्र को डच पहल से मिलेगा हाई-टेक बूस्ट, ग्रीनहाउस में होगी कीटनाशक-मुक्त फसल उत्पादन की शुरुआत – Khalihan News
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भारत के बागवानी क्षेत्र को डच पहल से मिलेगा हाई-टेक बूस्ट, ग्रीनहाउस में होगी कीटनाशक-मुक्त फसल उत्पादन की शुरुआत

भारत के बागवानी क्षेत्र को डच पहल से मिलेगा हाई-टेक बूस्ट, ग्रीनहाउस में होगी कीटनाशक-मुक्त फसल उत्पादन की शुरुआत

भारत का बागवानी क्षेत्र अब एक बड़े तकनीकी बदलाव की ओर बढ़ रहा है। नीदरलैंड (डच) सरकार ने भारत में एक नई साझेदारी पहल शुरू की है, जिसके तहत अत्याधुनिक हाई-टेक ग्रीनहाउस में कीटनाशक-मुक्त फसल उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा। इस परियोजना का उद्देश्य जल संरक्षण, ऊर्जा दक्षता और जलवायु-संवेदनशील (climate-resilient) खेती को प्रोत्साहित करना है।
डच सरकार की पहल — HortiRoad2India
डच बागवानी क्षेत्र ने HortiRoad2India नामक एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership) गठित की है, जो भारत में इस तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
परियोजना प्रबंधक टिफनी मेजर के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में डच विशेषज्ञों ने भारत की स्थानीय जरूरतों और परिस्थितियों का अध्ययन किया है और उसी आधार पर एक समग्र तकनीकी पैकेज तैयार किया गया है।
डेश रामनाथ, निदेशक एवं संयोजक, HortiRoad2India, ने बताया कि यह पहल केवल तकनीक देने तक सीमित नहीं है — इसमें शिक्षा, प्रशिक्षण, परामर्श और विपणन नेटवर्क भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि “हमने भारतीय बैंकों और डच सरकार के साथ मिलकर वित्तीय मॉडल भी तैयार किए हैं, जिससे किसान आसानी से इस प्रणाली को अपना सकें।”
मिड-टेक और हाई-टेक ग्रीनहाउस
इस डच पैकेज में ग्लासहाउस और पॉलीहाउस तकनीक शामिल हैं।
•हाई-टेक ग्लासहाउस: स्ट्रॉबेरी, रंगीन शिमला मिर्च, चेरी टमाटर, माइक्रो ग्रीन्स और लेट्यूस जैसी फसलें।
•मिड-टेक ग्रीनहाउस: टमाटर जैसी फसलें।
डेश रामनाथ के अनुसार, “यह तकनीक 96% कम पानी का उपयोग करती है और पारंपरिक खेती की तुलना में 30 गुना अधिक उत्पादन देती है। इसमें किसी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं होता; जैविक नियंत्रण विधियों से कीट प्रबंधन किया जाता है। हम जीएम फसलों का उपयोग नहीं करते, बल्कि रोग-प्रतिरोधी हाइब्रिड किस्मों को प्राथमिकता देते हैं।”
बड़े शहरों के पास ग्रीनहाउस क्लस्टर
डच टीम का लक्ष्य बड़े शहरों के आसपास उच्च-मूल्य फसल क्लस्टर विकसित करना है ताकि परिवहन के दौरान होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। वर्तमान में बेंगलुरु, चेन्नई और पंजाब में इस परियोजना के तहत ग्रीनहाउस निर्माण शुरू किया जा रहा है।
डच सरकार के वरिष्ठ अधिकारी आई. एम. (इवो) मेजर ने कहा कि “भारत में बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थ कटाई के बाद के नुकसान (post-harvest losses) के कारण बर्बाद हो जाते हैं। इसीलिए हम कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क बनाने पर भी ध्यान दे रहे हैं।”
🇳🇱 डच सरकार का दृष्टिकोण
दक्षिण भारत में नीदरलैंड के कौंसल जनरल एवाउट डे विट ने कहा कि यह पहल उपभोक्ताओं को स्वच्छ और कीटनाशक-मुक्त खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने के साथ-साथ किसानों की आय में स्थिरता सुनिश्चित करेगी। “यह खेती को एक तकनीकी पेशे में बदलेगी और ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर भी बढ़ाएगी,” उन्होंने कहा।
बेंगलुरु से जुड़ी मिसाल
बेंगलुरु के किसान रामकृष्ण, जो पहले एक आईटी इंजीनियर थे, अब The Bengaluru Berry Company के माध्यम से 12 एकड़ में स्ट्रॉबेरी उगा रहे हैं। वे कहते हैं —
“हमारे खेत पर लोग खुद आकर बेरी तोड़ते हैं। लेकिन अभी उत्पादन सीमित और मौसमी है। डच तकनीक अपनाकर मैं सालभर गुणवत्ता युक्त उत्पादन करना चाहता हूं।”
डच उद्यमी पीटर जान रॉबरमोंट ने कहा कि “भारतीय उद्योगपतियों और आईटी उद्यमियों को इस क्षेत्र में निवेश करना चाहिए। यह पहल भारतीय बागवानी को तकनीकी और टिकाऊ दिशा में आगे ले जाएगी।”

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