केंद्र सरकार नैनो-फर्टिलाइज़र को ‘स्थायी स्वीकृति’ देने की दिशा में आगे बढ़ रही है। कृषि मंत्रालय का मानना है कि पारंपरिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में नैनो-फर्टिलाइज़र खेती की लागत घटाने, उत्पादन बढ़ाने और पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि स्थायी मंजूरी से पहले सभी परीक्षणों से जुड़े आंकड़ों का विशेषज्ञों द्वारा गहन मूल्यांकन अनिवार्य होगा।
सूत्रों के अनुसार, फिलहाल नैनो-उर्वरकों को सीमित अवधि और नियंत्रित उपयोग के तहत अनुमति दी गई है। अब सरकार का लक्ष्य है कि इनके प्रभाव, फसल उत्पादकता, मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरणीय असर से जुड़े सभी वैज्ञानिक आंकड़ों का विश्लेषण कर इन्हें स्थायी मान्यता दी जाए।
कृषि मंत्रालय का कहना है कि विभिन्न राज्यों में किए गए फील्ड ट्रायल्स और प्रयोगशाला परीक्षणों से प्राप्त डेटा को विशेषज्ञ समितियों के समक्ष रखा जाएगा। इन समितियों में कृषि वैज्ञानिक, मृदा विशेषज्ञ और पर्यावरण विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो यह तय करेंगे कि नैनो-उर्वरक दीर्घकालिक रूप से सुरक्षित और प्रभावी हैं या नहीं।
अधिकारियों के मुताबिक, यदि परीक्षण परिणाम संतोषजनक पाए जाते हैं तो नैनो-उर्वरकों को पारंपरिक उर्वरकों के साथ आधिकारिक तौर पर खेती प्रणाली का हिस्सा बनाया जा सकता है। इससे उर्वरकों की खपत कम होने, किसानों की लागत घटने और जल व मिट्टी प्रदूषण में कमी आने की संभावना है।
विशेषज्ञों का मानना है कि नैनो-फर्टिलाइज़र तकनीक कृषि क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला सकती है, लेकिन इसके व्यापक उपयोग से पहले वैज्ञानिक प्रमाण और स्पष्ट दिशा-निर्देश बेहद जरूरी हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार किसी भी तरह का अंतिम निर्णय जल्दबाजी में नहीं लेना चाहती।



