दुनिया में फैले कोविड और बाद में रूस व यूक्रेन जंग से पैदा हालात के दौरान गेहूं व चावल मुहैया कराने वाले भारत को भुखमरी वाले देशों की सूची में 116 वें नंबर पर दर्ज किया गया है। भारत के बाद इस सूची में शामिल पंद्रह देश ही पीछे हैं। भारत ने इस रिपोर्ट को सही नहीं ठहराया है और रिपोर्ट की गणना के मानकों पर सवाल खड़े किए हैं।
इस सूची में केवल 15 देशों की स्थिति भारत से बदतर बताई गई है। इनमें पापुआ न्यू गिनी (102), अफगानिस्तान (103), नाइजीरिया (103), कांगो (105), मोजाम्बिक (106), सिएरा लियोन (106), तिमोर-लेस्ते (108), हैती (109), लाइबेरिया (110) शामिल हैं। वहीं मेडागास्कर (111), कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (112), चाड (113), मध्य अफ्रीकी गणराज्य (114), यमन (115) और सोमालिया को सबसे अंतिम 116 वें पायदान पर रखा गया है।
सरकार के अनुसार एफएओ द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली विधि अवैज्ञानिक है। उन्होंने गैलप द्वारा फोन पर किए गए ‘फोर क्वेश्चन’ पोल के परिणामों का मूल्यांकन किया है। इस अवधि के दौरान प्रति व्यक्ति भोजन की उपलब्धता जैसे कुपोषण को मापने के लिए किसी वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग नहीं किया गया है।
दुनिया की आबादी, आबोहवा, और खासतौर पर जीवन व जीव-जंतुओं आदि को विश्व मंच पर उजागर करने वाली संस्था ‘डाउन टू अर्थ ‘ के अनुसार इससे पहले ऑक्सफेम द्वारा जारी रिपोर्ट द हंगर वायरस मल्टीप्लाइज में भी वैश्विक स्तर पर भुखमरी की समस्या पर चिंता जताई थी, जिसके अनुसार दुनिया भर में हर मिनट करीब 11 लोग भूख के कारण दम तोड़ रहे हैं। करीब 15.5 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं। इस रिपोर्ट में भी भारत को एक हंगर हॉटस्पॉट के रूप में प्रदर्शित किया गया है। यदि 2020 के आंकड़ों को देखें तो भारत में करीब 19 करोड़ लोगो कुपोषण का शिकार हैं। वहीं पांच वर्ष से कम उम्र के करीब एक तिहाई बच्चों का विकास ठीक से नहीं हो रहा है।
भारत के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का कहना है कि यही नहीं इस रिपोर्ट में कोविड काल के दौरान पूरी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार के प्रयासों को पूरी तरह से नज़रअंदाज किया गया है, जिस पर सत्यापित आंकड़े उपलब्ध हैं। सर्वेक्षण के उत्तरदाताओं के पास ऐसा कोई प्रश्न नहीं था कि उन्हें सरकार या अन्य स्रोतों से क्या खाद्य सहायता मिली या नहीं। इस पोल में प्रतिनिधित्व भारत और अन्य देशों के लिए भी संदिग्ध है।