देश में बैंगन आलू के बाद दूसरी सबसे अधिक खपत वाली सब्जी फसल है | विश्व में चीन के बाद भारत बैंगन की दूसरी सबसे अधिक पैदावार वाला देश है । बैंगन भारत का देशज है । प्राचीन काल से भारत में इसकी खेती होती आ रही है। ऊँचे भागों को छोड़कर समस्त भारत में यह उगाया जाता है। बैंगन का प्रयोग सब्जी, भुर्ता, कलौंजी तथा व्यंजन आदि बनाने के लिये किया जाता है |
भारत मे तो छोटे बैंगन की प्रजाति का प्रयोग सांभर बनाने में भी किया जाता है | देश में बैगन की मांग 12 बनी महीने रहती है | स्थानीय मांग के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों व प्रान्तों में बैंगन की अलग–अलग किस्में प्रयोग में लाई जाती है | कम लागत में अधिक उपज व आमदनी के लिये उन्नतशील किस्मों एवं वैज्ञानिक तरीकों से खेती करना आवश्यक है |
पंजाब सदाबहार : इस किस्म के पौधें सीधे खड़े, 50-60 से.मी. ऊँचाई के, हरी शाखाओं और पत्तियों वाले होतें है | फल चमकदार, गहरे बैंगनी रंग के होतें है जो देखने मे काले रंग के प्रतीत होते है | फलों की लम्बाई 18 से 22 सें.मी. तथा चौड़ाई 3.5 से 4.0 सें.मी. होती है | समय से तुड़ाई करते रहने पर रोग व फल छेदक कीट का प्रकोप कम होता है | औसतन एक हैक्टेयर खेत से 300-400 कुन्तल पैदावार प्राप्त होती है|
स्वर्ण प्रतिभा: बीज डालने का समय मध्य जून जुलाई, नवम्बर –जनवरी, अप्रैल-मई वहीँ पौधा लगाने का समय सही समय जुलाई-अगस्त, दिसम्बर-फरवरी, मई- जून, गर्मी के दिनो के लिये उपयुक्त है | पौधा लगाने के 60-65 दिनों के बाद पहला फल की तुड़ाई की जा सकती है | पौधा की लम्बाई 15-20 सेंमी तक, फल – बैगनी, चमकीला होता है एक फल का औसत वजन 150 से 200 ग्राम तक होता है |
स्वर्ण श्यामली: भू-जनित जीवाणु मुरझा रोग प्रतिरोधी इस अगेती किस्म के फल बड़े आकार के गोल, हरे रंग के होते हैं। फलों के ऊपर सफेद रंग के धारियां होती है। इसकी पत्तियां एवं फलवृंतों पर कांटे होते हैं। रोपाई के 35-40 दिन बाद फलों की तुड़ाई प्रारंभ हो जाती है। इसके व्यजंन बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। इसकी लोकप्रियता छोटानागपुर के पठारी क्षेत्रों में अधिक है। इसकी उपज क्षमता 600-650 क्वि./हे. तक होती है।
काशी तरु: फल लम्बें, चमकीले गहरे बैगनी रंग के होतें है | रोपाई के 75-80 दिन उपरान्त तुड़ाई के लिये उपलब्ध होते है और उपज 700 -750 कु./ हे. होती है |
काशी प्रकाश: फल लम्बें पतलें और चमकीले हल्कें बैगनी रंग के होते है जिनका औसत वजन 190 ग्राम होता है | रोपाई के 80-85 दिन उपरान्त तुड़ाई के लिए उपलब्ध होते है और 600-650 कु./ हे. उपज प्राप्त की जा सकती है |
पूसा परपल लाँग: इसके पौधे 40-50 सें.मी. ऊचाई के, पत्तियां व तने हरे रंग के होते है | पत्तियों के मध्य शिरा विन्यास पर काटें पाये जाते हैं | रोपण के लगभग 75 दिन बाद फलत मिलने लगती है | फल 20-25 सें.मी. लम्बे, बैगनी रंग के, चमकदार व मुलायम होते है | फलों का औसत वजन 100-150 ग्राम होता है | इसकी पैदावार 250-300 कु./ हे. | पंत सम्राट: पौधे 80-120 सें.मी. ऊँचाई के, फल लम्बे, मध्यम आकार के गहरे बैगनी रंग के होते है | यह किस्म फोमोप्सिस झुलसा व जीवाणु म्लानि के प्रति सहिष्णु है | रोपण के लगभग 70 दिनों बाद फल तुड़ाई योग्य हो जाते है | इसके फलों पर तना छेदक कीट का असर कम पड़ता है | वर्षा ऋतु में बुआई के लिए यह किस्म उपयुक्त है | प्रति हैक्टेयर औसतन 300 कुन्टल पैदावार होती है |
काशी संदेश : पौधों की लम्बाई 71 सें.मी. पत्तियों में हलका बैंगनी रंग लिए होते है | फल गहरे बैंगनी रंग के गोलाकार और चमकीले होते है | फल का औसत वजन 225 ग्राम होता है रोपाई के 75 दिन बाद तुड़ाई कर 780-800 कु./ हे. की उपज प्राप्त की जा सकती है |
पंत ऋतुराज इस किस्म के पौधे 60-70 से. मी. ऊँचे, तना सीधा खड़ा, थोडा झुकाव लिए हुए, फल मुलायम, आकर्षक, कम बीज वाले, गोलाकार तथा अच्छे स्वाद वाले होते है | यह किस्म रोपण के 60 दिन बाद तुड़ाई योग्य तैयार हो जाती है | यह किस्म जीवाणु उकठा रोग के प्रति सहिष्णु है तथा दोनों ऋतुओं (वर्षा व ग्रीष्म) में खेती योग्य किस्म है | इसकी औसत पैदावार 400 कु./ हे. होती है |
बैंगन की उन्नत किस्मों की खेती करके किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। बैंगन की उन्नत किस्मों में पूसा पर्पर लोंग, पूसा पर्पर कलस्टर, पूर्सा हायब्रिड 5, पूसा पर्पर राउंड, पंत रितूराज, पूसा हाईब्रिड-6, पूसा अनमोल आदि शामिल है। एक हेक्टेयर में करीब 450 से 500 ग्राम बीज डालने पर करीब 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन मिल जाता है।