सूबे में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। अब सेब बागान मालिकों और सेब किसानों को लाभ पहुंचने की पहल सरकार की ओर से की गई है। इसके लिए अब इस साल देवभूमि,अदाणी, सफल, रिलायंस फ्रेश और बिग बास्केट जैसी कंपनियां सेब के दाम तय नहीं करेंगी। इस बार सेब का दाम तय करने के लिए कमेटी गठित की जाएगी। सरकार की तरफ से गठित कमेटी ही सेब खरीद के दाम तय करेगी। इस कमेटी में बागवानी विश्वविद्यालय,बागवानी विभाग और बागवान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। बता दें कि चुनावी साल में हिमाचल प्रदेश सरकार बागवानों की पिछले कई दशकों से चली आ रही पुरानी मांग को पूरा करने जा रही है।
बता दें कि निजी कंपनियां हिमाचल प्रदेश में हर वर्ष 30 से 35 हजार मीट्रिक टन सेब की खरीदती करती हैं। बागवान कंपनी के कलेक्शन सेंटर तक सेब को क्रेट में पहुंचाते हैं। जहां पर ग्रेडिंग कर एक्स्ट्रा लार्ज, लार्ज, मीडियम और स्माल आकार के सेब अलग किए जाते हैं|
इसके बाद सेब का रंग के आधार पर दाम तय किए जाते हैं। इनमें 100 प्रतिशत, 60 से 80 प्रतिशत और 60 प्रतिशत से कम लाल रंग के आधार पर इनकी कीमत आंकी जाती है।
बीते वर्ष कंपनियों ने 2020 के मुकाबले प्रति किलो 10 से 15 रुपये कम कीमत तय की थी। जिसे लेकर बागवानों में काफी रोष था और इसकेा लेकर नाराजगी जताई थी। पूरे हिमाचल प्रदेश में सेब सीजन की शुरूआत हो चुकी है। कंपनियां अगस्त के अंत में सेब खरीद की शुरूआत करती हैं जिससे कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों का क्वालिटी के सेब को खरीदा जा सके। सेब को सीए (कंट्रोल्ड एटमसफेयर) स्टोर में रख बाजार में उतारा जाता है। उस समय तक सीजन भी खत्म हो जाता है।
अभी तक निजी कंपनियां मंडियों के दाम के आधार पर कीमत तय करती थीं। जिसके चलते मंडियों में भाव गिरने पर बागवानों को कंपनियों को सेब बेचने पर काफी नुकसान उठाना होता था। लेकन अब निजी कंपनियां किस दाम पर सेब खरीदें यह तय करने के लिए ही कमेटी गठित की जाएगी। इसमें सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद तय होगा कि इस सीजन में व्यवस्था लागू होगी या नहीं।
संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने कहा कि निजी कंपनियों की मनमानी से बागवानों को बचाने के लिए ही कमेटी गठित की मांग कई सालों से हो रही थी। मांग पूरी करने के लिए सरकार गंभीर है, यह स्वागत योग्य कदम है।