कर्नाटक राज्य में गन्ना-किसान अब प्राकृतिक खेती की तरफ मुड़ रहे हैं| इसकी वजह देश और विदेश में रसायन-मुक्त गुड़ की लगातार बढ़ती मांग है| किसान इलाके के कृषि विज्ञान केन्द्रों के विषय विशेषज्ञों से प्राकृतिक खेती के तौर-तरीके सीख रहे हैं|
मैसूर जिले में गन्ने की खेती 17,130 हेक्टेयर भूमि और चामराजनगर जिले में 7,127 हेक्टेयर भूमि में फैली हुई है। एक खबर के मुताबिक, उनमें से जैविक गन्ने की खेती दोनों जिलों में गन्ने की खेती के कुल क्षेत्रफल का 1-2 प्रतिशत है।
जैविक गुड़ के उत्पादन की लागत भी बहुत कम है क्योंकि उत्पादक स्थानीय रूप से उपलब्ध कैल्शियम युक्त चूना पत्थर और अन्य जैविक उत्पादों का उपयोग करते हैं। सफेद गुड़ उत्पादक कैल्शियम कार्बोनेट और सोडियम बाइकार्बोनेट का उपयोग अन्य रसायनों के बीच वजन बढ़ाने और इसे पॉलिश करने के लिए गुड़ को संसाधित करने के लिए करते हैं।
दक्षिण कन्नड़ के किसानों की सबसे बड़ी संपत्ति कहे जाने वाले ब्रह्मवार सहकारी चीनी मिल के नई प्रशासनिक समिति ने किसानों से गन्ना खरीदा और मिल अब शुद्ध जैविक गुड़ बेचने के लिए तैयार है। राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित आलेमेन को जनता से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। यह गुड़ किसी भी रसायनों का उपयोग किए बिना तैयार किया जाता है और उपभोक्ताओं को सीधे आपूर्ति की जाती है। ब्रह्मवार चीनी मिल की प्रशासनिक समिति के अध्यक्ष और निदेशक ने प्राथमिक चरण में ही गन्ना किसानों को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया।
मिल में प्रतिदिन 15 टन गन्ना क्रशिंग की क्षमता है। वर्तमान में पांच टन गन्ने का क्रशिंग किया जाता है, जिससे 450 किलोग्राम गुड़ का उत्पादन होता है। उपभोक्ता इस जैविक गुड़ को सीधे मिल से खरीदते हैं। दिनों-दिन गुड़ की मांग बढ़ रही है। पहले उच्च उपज गन्ने के बीज मंड्या से लाए गए थे और चीनी मिल को पुनर्जीवित करने के लिए स्थानीय किसानों को वितरित किए गए थे। दिसंबर 2018 में बीज वितरित किए गए और किसानों ने गन्ना लगाया |