बुलंदशहर के रहने वाले इंजीनियर मुनेंद्र सिंह के पिता फॉरेस्ट रेंजर थे| साल 2000 में 12वीं करने के बाद मुनेंद्र ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की, फिर मुनेंद्र प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली| कुछ साल बाद जॉब छोड़कर इंग्लैंड से मुनेंद्र ने एमबीए किया और वहीं एक बड़े होटल में नौकरी करने लगे|
परिवार में कुछ परेशानी की वजह से साल 2014 में मुनेंद्र वापस बुलंदशहर लौट आए| यहां रोजी-रोटी का संकट दिखने की वजह से मुनेंद्र ने अपने एक दोस्त से पैसे उधार लेकर बकरी-पालन शुरू किया| मुनेंद्र के एक दोस्त ने मैसूर में बकरी-पालन शुरू किया है| उसके लिए मुनेंद्र ने 200 बकरियों का लॉट खरीदकर उन्हें मैसूर पहुंचाया और इसके बदले मिले कमीशन से मुनेंद्र ने बकरी-पालन शुरू कर दिया|
शुरुआत में मुनेंद्र ने कुल 13 बकरियों से काम शुरू किया था| इस समय मुनेंद्र के बकरी-फार्म में 600 से अधिक बकरियां हैं| अलग-अलग नस्ल की बकरियों के पालन से मुनेंद्र का मुनाफा लगातार बढ़ता जा रहा है| मुनेंद्र के मुताबिक मटन की बिक्री के साथ बकरी के दूध की मांग लगातार बढ़ रही है|
मुनेंद्र अब अपने फार्म की बकरियों के दूध से घी निकालने और दूध का उत्पादन बढ़ाने की प्लानिंग कर रहे हैं| इस समय मुनेंद्र अपने बकरी-फार्म से दक्षिण भारत के कई राज्यों में बकरियों के दूध की सप्लाई कर रहे हैं|
करीब 7 साल में मुनेंद्र का सालाना कारोबार तीन करोड़ रुपए पहुंच गया है| बुलंदशहर के पास मुनेंद्र का बकरी-फार्म (Goat Farm) 32,000 वर्ग फीट में फैला हुआ है. मुनेन्द्र ने बकरी-पालन शुरू करने वाले लोगों के लिए कहा कि भारत में 30 नस्ल की बकरियां पाई जाती हैं| बीटल बकरी पालना सबसे फायदेमंद सौदा है|
इसके बाद उनके बकरी-फार्म में जमुनापारी, सिरोही, उस्मानाबादी और बरबरी नस्ल की फार्मिंग से किसानों को काफी फायदा हो सकता है| मुनेंद्र सिंह अब देश के कई इलाके के लोगों को बकरी- फार्म की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं|
वास्तव में देश में मुख्य रूप से गाय और भैंस की दूध को ही लोग कमाई का प्रमुख साधन मानते हैं| उनका कहना है कि अगर आप बकरी-पालन कर बकरी के दूध का बिजनेस करते हैं तो इससे काफी कमाई हो सकती है| बकरी का दूध गाय के दूध की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है जबकि यह 5-6 गुना तक महंगा बिकता है|