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उत्तर प्रदेश : फूलों की खेती से खिलेंगे किसानों के चेहरे

फूलों की खेती मिशन के तहत उत्तर प्रदेश में फूलों की खेती को बढ़ावा देने की पहल शुरू कर दी गयी है| फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए यूपी सरकार जल्द ही डीपीआर तैयार करेगी|

सीएसआईआर-एनबीआरआई देश भर में फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र द्वारा नियुक्त नोडल निकाय है| बागवानी विभाग के निदेशक आरके तोमर ने कहा कि हम, एनबीआरआई के साथ मिलकर, राज्य में फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए जल्द ही एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करेंगे और एनबीआरआई को हर संभव सहायता प्रदान करेंगे| उन्होंने कहा कि वर्तमान में राज्य सरकार के पास फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए कोई अलग योजना नहीं है| तोमर ने कहा कि सरकार फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए चल रही कुछ योजनाओं को बदलने के बारे में सोच सकती है|

प्रदेश में फूलों की खेती को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं, जो अन्य राज्यों से घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादातर फूलों का आयात करता है| वाराणसी एक महत्वपूर्ण फूल बाजार है| लेकिन यहां पर आवश्यकत का 30-40 फीसदी फूल कोलकाता से मंगाया जाता है| उन्होंने कहा, सीएसआईआर-एनबीआरआई को कोल्ड चेन स्थापित करने, विपणन सुविधाएं बनाने, किसानों तक पहुंचने के लिए राज्य सरकार के समर्थन की जरूरत है, यहां तक ​​​​कि एनबीआरआई तकनीकी सहायता दे सकता है|

बुंदेलखंड में फूलों की खेती से भी किसान फलफूल सकते हैं। इसकी यहां काफी संभावनाएं हैं। इसी श्रृंखला में कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के उद्यान विभाग में गेंदा, चाइना एस्टर और ग्लैडियोलस फूलों का शोध मूल्यांकन चल रहा है। गेंदा की छह प्रमुख प्रजातियों का मूल्यांकन किया जा रहा है।

बुंदेलखंड में उपलब्ध संसाधनों से कृषक पुष्प उत्पादन से अपनी आमदनी दोगुनी कर सकते हैं। इसके लिए यहां की जलवायु और मृदा दोनों ही मुफीद हैं। फूलों की खेती के इच्छुक किसान इसकी तकनीकी जानकारी के लिए विश्वविद्यालय से सलाह ले सकते हैं। उद्यान महाविद्यालय के फ्लोरी कल्चर एवं लैंड स्कैप आर्किटेक्चर विभागाध्यक्ष डा. अजय कुमार सिंह ने बताया विश्वविद्यालय में गेंदा, चाइना एस्टर और ग्लैडियोलस फूलों में शोध मूल्यांकन किया जा रहा है।

गेंदा की छह प्रमुख प्रजातियां शामिल हैं। इनमें पांच प्रजातियों पूसा नारंगी, पूसा बसंती, पूसा अर्पिता, पूसा दीप और पूसा केसर तथा एक स्थानीय प्रजाति कल्याण-दो का मूल्यांकन किया जा रहा है। यहां की परिस्थिति अनुकूल और मृदा एवं जलवायु तथा सिंचाई के लिए उपलब्ध पानी के आधार पर ही मूल्यांकन किया जा रहा है।

डा. सिंह ने बताया बुंदेलखंड में गेंदा की अपार संभावनाएं हैं। यहां प्रजातियों के हिसाब से इसके भाव अलग-अलग हैं। उन्होंने बताया चाइना एस्टर के मूल्यांकन के लिए आईआईएचआर की पांच प्रजातियां और महाराष्ट्र की एक प्रजाति को चयनित किया गया है। ग्लैडियोलस के मूल्यांकन के लिए राष्ट्रीय वनस्पति शोध संस्थान, लखनऊ की 12 प्रजातियां चुनी गई हैं।

शोध टीम के वैज्ञानिक और सहायक अध्यापक डा. राकेश कुमार ने बताया गेंदा के फूल की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। फसल का प्रबंधन यदि सही किया जाए तो कम क्षेत्र में भी इससे अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। शोध टीम के वैज्ञानिक केएस तोमर ने बताया कि बुंदेलखंड की सभी मृदाओं (मिट्टी) में गेंदा और ग्लैडियोलस की सफलतम खेती की जा सकती है।

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