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जैविक खेती को बढावा , कई कीटनाशकों पर रोक लगेगी

सरकार ने जैविक और प्राकृतिक खेती पर जोर देना शुरू किया है| सभी राज्य सरकारों ने अपने बजट में जैविक खेती करने पर विशेष बजट रखा है| और उधर, खतरनाक कीटनाशकों पर नकेल कसनी शुरू हो गई है. सरकार ने दो कीटनाशकों पर रोक लगा दी है. इनके नाम स्ट्रेपटोमाइसिन और टेरासाइक्लिन हैं. बताया जाता है कि टमाटर और सेब की फसलों को कीटों से बचाने के लिए इनका इस्तेमाल होता है.

प्रतिबंध के लिए प्रस्तावित इन 27 कीटनाशकों में 4 कार्बोसल्फान, डिकोफोल, मेथोमाइल और मोनोक्रोटोफॉस हैं, जो अत्यंत जहरीले होने के कारण पहले से ही रेड कैटेगरी में हैं। इनमें मोनोक्रोटोफॉस वही दवा है, जिसका छिड़काव करते समय 2017 में महाराष्ट्र के यवतमाल, नागपुर, अकोला और अमरावती में कई किसानों की मौत हो गई थी और सैकड़ों बीमार हो गये थे। इसी जहरीली दवा के अवशेषों के मिलावट से 2013 में बिहार के एक स्कूल में मिड-डे मील खाकर दर्जनों बच्चे असमय काल के गाल में समा गये थे। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन लंबे समय से इस खतरनाक दवा को बंद करने की सिफारिश कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत में वर्षों से इसका उत्पादन भी हो रहा है, प्रयोग भी और निर्यात भी। ये सारे के सारे ऐसे कीटनाशक हैं जो अमेरिका और यूरोप के अधिकतर देशों में प्रतिबंधित हैं।

कीटनाशकों के इस्तेमाल के पैरोकार इसके पक्ष में सबसे बड़ा तर्क यही देते हैं कि एकाएक इन्हें बंद करने से उत्पादन में गिरावट आ सकती है। लेकिन दुनिया के प्रतिष्ठित कृषि शोध संस्थाओं और डब्ल्यूएचओ द्वारा समय-समय पर जारी रिपोर्टों में लगातार यह बात कही गई है कि ऐसी आशंका का कोई आधार नहीं हैं। साल 2003 में अंतरराष्ट्रीय चावल शोध संस्थान के निदेशक रोनाल्ड कैंट्रल ने एक अन्य वैज्ञानिक के साथ मिलकर धान की खेती में कीटनशाकों के प्रयोग पर एक अध्ययन किया। इसके निष्कर्ष में उन्होंने बहुत साफ कहा कि एशिया में धान की फसलों पर कीटनाशकों का इस्तेमाल समय और मेहनत की बरबादी है। अध्ययन में कैंट्रल और उनके साथी वैज्ञानिक ने कहा, “वियतनाम, फिलिपींस, बंगलादेश और भारत में हमने किसानों को कीटनाशकों के बिना चावल की बेहतर खेती करते देखा है।”

दशकों पहले जब इंडोनेशिया में ब्राउन प्लांट हॉपर कीटों के हमले से वहां एक अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया था और वहां के राष्ट्रपति सुहार्तो ने आईआरआरआई को एसओएस भेजा था, तब 6 वैज्ञानिक इंडोनेशिया गये थे और वहां अध्ययन के बाद उन्होंने जो रिपोर्ट दी थी, उसमें सीधे तौर पर उन 57 कीटनाशकों पर रोक लगाने की सिफारिश की गई थी, जो उस समय इंडोनेशिया में चावल की खेती के लिए इस्तेमाल होते थे। सुहार्तो ने तुरंत वह सिफारिश मान ली थी और इससे अमेरिकी कीटनाशक उद्योग में ऐसा भूचाल आया था कि उनका एक प्रतिनिमंडल सुहार्तो को यह समझाने इंडोनेशिया पहुंच गया था कि इन कीटनाशकों के प्रयोग के बिना इंडोनेशिया में खाद्य संकट हो जाएगा। सुहार्तो ने कीटनाशक उद्योग के प्रतिनिधियों की चेतावनी पर IRRI के वैज्ञानिकों की राय को तरजीह दी और आने वाले सालों में इंडोनेशिया बिना कीटनाशकों के इस्तेमाल के चावल की उत्पादकता और बढ़ गई।

आंध्र प्रदेश ने इस संदर्भ में पिछले कुछ वर्षों में एक उल्लेखनीय काम किया है जो कि शेष भारत के लिए एक मॉडल बन सकता है। विभिन्न राज्यों में कीटनाशकों के इस्तेमाल से संबंधित भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2000-01 में पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात देश में प्रति हेक्टेयर कीटनाशकों का इस्तेमाल करने वाले शीर्ष पांच राज्य थे जहां यह इस्तेमाल क्रमशः 0.98, 0.84, 0.34, 0.32 और 0.30 किलोग्राम था, लेकिन 2009-10 में यह आंकड़ा क्रमशः 0.82, 0.68, 0.09, 0.45 और 0.29 किलोग्राम हो गया।

इनसे साफ है कि आंध्र प्रदेश ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता हासिल करते हुए 10 सालों में प्रति हेक्टेयर कीटनाशकों का इस्तेमाल 340 ग्राम से घटाकर 9 ग्राम कर लिया। और जिन भी किसानों ने अपने खेतों में गैर कीटनाशक प्रबंधन के तौर तरीकों को अपनाया उनकी आमदनी में भी भरपूर बढ़ोतरी हुई। कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि यदि इनके साथ जैविक खादों के इस्तेमाल को भी शामिल कर लें, तो चावल, मक्का, कॉटन, मिर्च, मूंगफली और सब्जी किसानों की आमदनी में प्रति एकड़ क्रमशः 5590, 5676, 5676, 7701, 10483 और 3790 रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

ऐसे में 27 कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने का भारत सरकार का प्रस्ताव न केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा, बल्कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिहाज से भी इस फैसले के परिणाम बहुत अहम होंगे, इसमें कोई शक नहीं है। मजेदार बात यह है कि सरकार का ही एक मंत्रालय कीटनाशक उद्योग का पैरोकार बन इस प्रस्ताव के खिलाफ लॉबिंग कर रहा है। यह वो मंत्रालय है, जिस पर देश की केमिकल इंडस्ट्री से नियमों का पालन सुनिश्चित कराने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन हालत यह है कि स्वयं इस मंत्रालय के पास प्रतिबंध के लिए प्रस्तावित 27 में से 10 कीटनाशकों के बारे में कोई आंकड़ा नहीं है। और बाकियों के बारे में भी जो आंकड़े हैं, साफ है कि उसमें भारी गड़बड़ी है।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के पास भारत में उत्पादन किए जा रहे 60 से अधिकत टेक्निकल ग्रेड कीटनाशकों में से केवल 43 के बारे में आंकड़े मौजूद हैं। और जो आंकड़े हैं, उनमें भी कई गड़बड़ियां हैं, जैसे कि 2016-17 और 2017-18 में केमिकल और पेट्रोकेमिकल के निर्यात की मात्रा देश में उपलब्ध कुल इंस्टॉल्ड कैपेसिटी से भी ज्यादा दिखाई गई है, जबकि वास्तविक उत्पादन इस क्षमता के 50-60 प्रतिशत के इर्द-गिर्द दिखाया गया है।

ये ऐसे तथ्य हैं, जो साफ साबित करते हैं कि देश में हो रहा कीटनाशकों का छुट्टा प्रयोग सिर्फ किसानों में जागरूकता की कमी का नतीजा नहीं है, बल्कि एक आपराधिक साजिश का परिणाम है और इसलिए सरकार को न केवल इस कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, बल्कि उद्योग जगत के भारत चल रहे कार्य-कलापों की भी विस्तृत जांच करनी चाहिए।

केंद्र सरकार ने इससे पहले 27 कीटनाशकों को खतरनाक बनाकर प्रतिबंध लगाया था| लेकिन इसे बनाने वाली लॉबी के दबाव में यह फैसला अब तक लागू नहीं हो पाया है| इन कीटनाशकों के नफे नुकसान की समीक्षा हो रही है| अब अगर सरकार इसे मानव जीवन के लिए खतरनाक पाएगी तब उन्हें प्रतिबंधित करने पर मुहर लगाई जाएगी| फिलहाल, दो नए कीटनाशकों पर प्रतिबंध का मुद्दा चर्चा में है|

बताया गया है कि केंद्र सरकार ने आदेश दिया है कि 1 फरवरी 2022 से जारी स्ट्रेपटोमाइसिन और टेरासाइक्लिन नामक कीटनाशकों के इंपोर्ट एवं प्रोडक्शन पर रोक रहेगी| जिन कंपनियों ने इसका कच्चा माल मंगा लिया है उन्हें पुराना स्टॉक खाली करने का वक्त दिया जाएगा| इन दोनों का कारोबार करने वाली कंपनियां 31 जनवरी, 2022 तक इससे बने प्रोडक्ट्स को 2024 तक बेच सकेंगी| यह कवकनाशी (फंगल साइड)और बैक्टीरियल प्लांट रोग नियंत्रक हैं|

बताया गया है कि केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड ने 2020 में दोनों केमिकल पर रोक लगाने की सरकार से मांग की थी| बोर्ड के अधिकारियों का कहना था कि टमाटर और सेब जैसे ज्यादा खपत वाली फल, सब्जियों में इनका प्रयोग मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालता है| ये दोनों आलू और धान को सुरक्षित रखने के नाम पर भी प्रयोग किए जाते रहे हैं|

कुछ साल पहले, बासमती धान की खेती में भी इस्तेमाल होने वाले 12 कीटनाशकों पर पंजाब सरकार ने रोक लगाई थी| क्योंकि फसल में कीटनाशक की मात्रा तय लिमिट से अधिक पाई जा रही थी| इसलिए चावल को यूरोप और मिडिल ईस्ट में एक्सपोर्ट करने में दिक्कत आ रही थी| भविष्य में बासमती पैदा करने वाले किसानों को बड़ा नुकसान न हो, इसे देखते हुए कुछ दिन के लिए इनके कीटनाशकों पर रोक लगाई गई थी|

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