बंगाल में जूट उद्योग क्षेत्र से जुड़े मुद्दे भी लोकसभा चुनाव में अहम साबित हो सकते हैं। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल जनवरी में जूट मिलों द्वारा वेतन में किए गए संशोधन को मजदूरों के बीच समर्थन जुटाने के लिए चुनावी मुद्दा बना रही है। बंगाल की जूट मिलों में करीब 2.50 लाख कर्मचारी काम करते हैं जबकि राज्य में 40 लाख किसान राज्य में कच्चे माल के उत्पादन में जुटे हुए हैं।
जूट बैग (बोरी) के वार्षिक उत्पादन अनुमानों की तुलना में सरकार की कम मांग के चलते जूट की मिलों के संचालन में अल्पकालिक अस्थिरता आ गई है और श्रम बल में कटौती से राज्य के जूट क्षेत्र में भाजपा के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। जूट उद्योग से जुड़े हितधारकों के मुताबिक कच्चे माल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि और केंद्र द्वारा जूट बैग में 100 प्रतिशत खाद्यान्न पैकेजिंग के मानदंड में कोई कमी नहीं किए जाने के बावजूद, चुनाव से पहले अस्थायी ऑर्डर संकट तृणमूल कांग्रेस को चुनावी लड़ाई में कुछ फायदा पहुंचा सकता है।
भारतीय जूट मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राघव गुप्ता ने कहा कि मिलों ने पहले ही उत्पादन में 10-15 प्रतिशत की कटौती शुरू कर दी है और इसके 20-25 प्रतिशत तक और कम होने की आशंका है। कुछ इकाइयां वास्तविक मांग के साथ उत्पादन का मिलान करने के लिए सप्ताह में चार से पांच दिन काम कर रही हैं। मिलें अनुमान के आधार पर जूट बैग का उत्पादन करती हैं। चालू रबी फसल सीजन में, खाद्यान्न के लिए जूट बैग की सरकारी खरीद सीजन की शुरुआत में सरकार द्वारा दिए गए अनुमानों की तुलना में 3.5 लाख गांठ कम रही है। उन्होंने कहा कि उत्पादन में कटौती के अलावा, मिल बंद होने की भी खबरें हैं और इसका मुख्य कारण जूट बैग की सरकारी मांग में कमी है।
उत्तर 24 परगना की बैरकपुर लोकसभा सीट से फिर से चुनाव लड़ रहे अर्जुन सिंह ने मौजूदा संकट के लिए मिल मालिकों के एक वर्ग को जिम्मेदार ठहराया है। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के पदाधिकारी विनोद सिंह ने दावा किया कि अधिकांश मिल कर्मचारी भाजपा समर्थक हैं और पार्टी को ही वोट देंगे क्योंकि वे जानते हैं कि केंद्र में राजग सरकार उनके मुद्दों को हल करने के लिए उत्सुक है।
पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग के लिए कच्चा माल यानी जूट की खेती करने वाले किसानों ने जूट यानी पटसन के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की पुरज़ोर मांग को लेकर प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन कर रहे जूट किसानों ने केंद्र सरकार पर जूट किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि किसानों को केंद्र की तरफ से जूट के लिए जो एमएसपी दी जाती है वह 5050 रुपये प्रति क्विटल है, जबकि प्रति क्विंटल जूट उत्पादन करने में और उसे जूट खरीद केंद्र तक ले जाने में एक जूट किसान को लगभग 8000 रुपये से अधकि की लागत आती है। ऐसे में किसान इतनी कम एमएसपी पर जूट बेचकर क्या करेंगे। उन्हें तो नुकसान ही हो रहा है। इसलिए उन्होंने मांग करते हुए कहा कि जूट की एमएसपी बढ़ाई जाए।