पटना। बिहार की राजनीति एक बार फिर नए समीकरण और पुराने तनावों के बीच खड़ी है। नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में अंदरूनी खींचतान तेज हो गई है। जहां बीजेपी और जेडीयू गठबंधन के बड़े स्तंभ बने हुए हैं, वहीं छोटे सहयोगी – चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) – अब अधिक हिस्सेदारी की मांग करते हुए गठबंधन को अस्थिर करने की स्थिति में खड़े नजर आ रहे हैं।
चिराग पासवान की बढ़ती ताकत
2024 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी (राम विलास) ने सभी 5 सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखा दी थी। इसी आत्मविश्वास के साथ चिराग पासवान अब विधानसभा चुनाव में करीब 40 सीटों की मांग कर रहे हैं। उन्होंने संकेत दिया है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने से पीछे नहीं हटेंगे।
जीतन राम मांझी का दांव
79 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी अपने दल के लिए बड़ी हिस्सेदारी चाहते हैं। 2024 में गया लोकसभा सीट जीतकर मांझी ने अपनी साख फिर से बनाई और अब वे गया और औरंगाबाद की सभी सीटों पर दावा ठोक रहे हैं। उनका कहना है कि महादलितों का समर्थन एनडीए को मजबूत करता है, इसलिए उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता।
बीजेपी और जेडीयू की मुश्किलें
बीजेपी और जेडीयू की जोड़ी ने 2020 में मिलकर सत्ता संभाली थी। तब एनडीए को 125 सीटें मिली थीं (बीजेपी 74 और जेडीयू 43)। लेकिन एलजेपी की बगावत ने जेडीयू को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। 2024 लोकसभा चुनाव में NDA ने शानदार प्रदर्शन किया – बीजेपी और जेडीयू को 12-12, एलजेपी को 5 और HAM को 1 सीट मिली। इसके बावजूद, राजद (RJD) और INDIA गठबंधन की बढ़ती ताकत एनडीए के लिए चुनौती बनी हुई है।
सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर चर्चाएं जारी हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जेडीयू को 102, बीजेपी को 101, एलजेपी को 20 और HAM को 10 सीटें दिए जाने की बात चल रही है। लेकिन चिराग और मांझी की बढ़ती मांगों ने इस समीकरण को पेचीदा बना दिया है।
समीकरण और सियासी जोखिम
एनडीए की ताकत उसकी सामाजिक इंजीनियरिंग में है – ऊंची जातियां (बीजेपी), कुर्मी और ईबीसी (जेडीयू), पासवान (एलजेपी) और महादलित (HAM)। लेकिन यही उसका कमजोर पक्ष भी है। यदि चिराग और मांझी नाराज़ होकर अलग राह पकड़ते हैं तो इसका सीधा फायदा राजद और महागठबंधन को मिल सकता है।
आगामी तस्वीर
बिहार का राजनीतिक शतरंज एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। NDA को सत्ता में बने रहने के लिए सहयोगियों की महत्वाकांक्षाओं और अपनी राजनीतिक मजबूरियों के बीच संतुलन साधना होगा। यह चुनाव सिर्फ सीटों का नहीं, बल्कि विश्वास, वर्चस्व और अस्तित्व का भी संघर्ष होगा।
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